Friday, August 5, 2011

अब कस कै बांध लंगोटो




संकट म्ह है हिन्दुस्तान


अब कस कै बांध लंगोटो
अर हाथ म्ह ले ले घोटो
बाबा बजरंगी हनुमान, संकट म्ह है हिन्दुस्तान

म्हे शरण मैं आया थारी
थे हरल्यो विपदा म्हारी
बळ दिखलाओ बलवान, संकट म्ह है हिन्दुस्तान

दीमक बण कै चाट रिया है देस नै खादीधारी

रक्षक ही भक्षक बण बैठ्या, बाड़ खेत नै खारी
राजा, मन्त्री, दरबारी
सगळा ही भ्रष्टाचारी
सब का सब बे-ईमान, संकट म्ह है हिन्दुस्तान

देर करो मत हनुमत अब थे, बेगा बेगा आओ

स्विस बंकां म्ह पड़ी संजीवन, थे भारत म्ह ल्याओ
गास्यां तेरा गुणगान
अर मानांगा एहसान
दुःखभंजक दयानिधान, संकट म्ह है हिन्दुस्तान


- अलबेला खत्री



albela khatri & abhijit sawant in laughter ke phatke on star one

Monday, December 6, 2010

जाओ लाड्डी सा जाओ....... आपणै स्यूं कोई का ठोला कोनी खाईजै





घणाइ
कर लिया रातीजोगा तेरै चक्कर म्हे

अब कोनी होवै

हाँ लाड्डी,

अब कोनी होवै रतजगा म्हारै स्यूं


ना तन स्यूं

ना मन स्यूं

ना धन स्यूं

तन थक गयो है

मन पक गयो है

अर धन ?

बिंका तो पड़ रया है जी लाला

किंनै दिखावाँ फूटयोड़ा छाला

लोग लूण लियां बैठ्या है हाथां म्हे

बेटा पैली पैली तो भर सी बाथां म्हे

फेर मारसी ठोला खींच' माथा म्हे

तेरै प्यार कै चक्कर म्हे ठोला खाणा मंने पसन्द कोनी

ठोला तो ठोला होवै है कोई अलवर को कलाकन्द कोनी

जिका नै स्वाद स्यूं खाल्यूं

अर तेरै स्यूं प्यार निभाल्यूं


इसा, पांगळा गीत मेरै स्यूं कोनी गाइजै

जाओ लाड्डी सा जाओ.......

आपणै स्यूं कोई का ठोला कोनी खाईजै


-अलबेला खत्री


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Friday, December 3, 2010

नकली घी रो सीरो खा'र मर जावां




लाय लिपटगी घर स्यूं पण घर छोड़ कठि नै जावां ?

सूत्या सगळा राल्ली म्हे, किंनै दिल रो दरद सुनावां ?

खाण्डो कोनी, ढाल बी कोनी, अब कैंयाँ जान बचावां ?

जी म्हे आवै भायां नकली घी रो सीरो खा' मर जावां


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Wednesday, December 1, 2010

तू तो ले बैठ्यो मन्ने

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हास्य सम्राट डॉ रामरिख "मनहर" जी

कवि-सम्मेलना म्हे आपरै सञ्चालन म्हे

अक्सर मन्ने कहया करता हा :





मैं लेण आयो थो तन्ने

तू तो ले बैठ्यो मन्ने

तू छोड़ दे मन्ने

तो मैं ले जाऊं तन्ने ..............हा हा हा हा


Monday, November 29, 2010

अठै रा मिनख घणैइ मजै म्है रैवे है

______________राजस्थानी कविता

ऐ गाम है सा ...

ऐ गाम है सा
थे तो सुणयो इ होसी ...

अठै अन्न-धन्न री गंगा बैवै है
अठै रा मिनख घणैइ मजै म्है रैवै है

बीजळी ?

ना सा, जगण आळी बीजळी रो अठै कांइं काम ?

अठै तो बाळण आळी बीजळियां पड़ै है
कदै काळ री,

कदै गड़ां री,

कदै तावड़ै री
जिकी टैमो-टैम चांदणो कर देवै है
ऐ गाम है सा
अठै रा मिनख घणैइ मजै म्है रैवे है ...


दुकान ?

ना सा, बा दुकान कोनी
बा तो मसाण है
जिकी मिनख तो मिनख,

बांरै घर नै भी खावै है
बठै बैठ्यो है एक डाकी,

जिको एक रुपियो दे' र
दस माथै दसकत करावै है
पैली तो बापड़ा लोग,

आपरी जागा,

टूमां अर बळद
अढाणै राख' र करजो लेवै है
पछै दादै रै करज रो बियाज
पोतो तक देवै है
करजो तोई चढय़ो रैवे है
ऐ गाम है सा
अठै रा मिनख घणैइ मजै म्है रैवै है ...


डागदर?

डागदर रो कांई काम है सा ?

बिंरौ कांई अचार घालणो है ?

अठै
पैली बात तो कोई बीमार पड़ै कोनी
अर पड़ इ जावै तो फेर बचै कोनी
जणां डागदर री
अणूती
भीड़ कर' र
कांई लेवणो ?
ताव चढ़ो के माथो दुःखो
टी.बी. होवो चाये माता निकळो
अठै रा लोग तो
घासो घिस-घिस अर देवै है
अनै धूप रामजी रो खेवै है
ऐ गाम है सा
अठै रा मिनख घणैइ मजै म्है रैवै है

रामलीला?

आ थानै रामलीला दीठै ?

आ तो
पेटलीला है सा
जिकै म्है
घर रा सगळा टाबर-टिंगर
लड़ै है,

कुटीजै है ...

पेट तो किंरो इ कोनी भरै,

पण ...

मूंडो तो ऐंठो कर इ लेवै है
जणा इ तो दुनिया कैवै है
ऐ गाम है सा
अठै रा मिनख घणै इ मजै म्है रैवै है


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Thursday, November 18, 2010

कुर्सी जद स्यूं मिलगी, कोड्डा कोड्डा चालै





चलता
चालो भायां जद तक गोड्डा चालै

भार उठायाँ सरसी जद तक मोड्डा चालै


पतनी चंडी मिलै तो घर रण बण जावै

ठीकर चालै, मूसळ चालै, लोड्डा चालै


सात बजै रै बाद सा' री मैफिल महे

रांडां चालै, दारू चालै, सोड्डा चालै


पैल्याँ तो
बै घणा नमित अर सीधा हा

कुर्सी जद स्यूं मिलगी, कोड्डा कोड्डा चालै


अयियां चालै संसद जयियाँ हाइवे पर

दिन महे ढाबा और रात नै अड्डा चालै


ख़ूब तरक्की हुई देस महे "अलबेला"

साची बात करण आलां पर ठुड्डा चालै




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