Thursday, November 18, 2010
कुर्सी जद स्यूं मिलगी, कोड्डा कोड्डा चालै
चलता चालो भायां जद तक गोड्डा चालै
भार उठायाँ सरसी जद तक मोड्डा चालै
पतनी चंडी मिलै तो घर रण बण जावै
ठीकर चालै, मूसळ चालै, लोड्डा चालै
सात बजै रै बाद सा'ब री मैफिल महे
रांडां चालै, दारू चालै, सोड्डा चालै
पैल्याँ तो बै घणा नमित अर सीधा हा
कुर्सी जद स्यूं मिलगी, कोड्डा कोड्डा चालै
अयियां चालै संसद जयियाँ हाइवे पर
दिन महे ढाबा और रात नै अड्डा चालै
ख़ूब तरक्की हुई देस महे "अलबेला"
साची बात करण आलां पर ठुड्डा चालै
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jai jai rajasthan... jai rajasthani...
ReplyDeleteवाह भाई अलबेला खत्री जी ,वाह ! निहाल ई कर दिया ! आपरै राजस्थानी प्रेम नै निवण !
ReplyDelete===================
अयियां चालै संसद जयियाँ हाइवे पर
दिन महे ढाबा और रात नै अड्डा चालै
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आ कविता भी जोरदार सा !
आप राजस्थानी में खुल’र लिखो
मिट्टी की सुगंध से भरपूर व्यंग्यात्मक रचना
ReplyDeletebest
ReplyDeletethanks for rajasthani bhasha
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