Monday, December 6, 2010

जाओ लाड्डी सा जाओ....... आपणै स्यूं कोई का ठोला कोनी खाईजै





घणाइ
कर लिया रातीजोगा तेरै चक्कर म्हे

अब कोनी होवै

हाँ लाड्डी,

अब कोनी होवै रतजगा म्हारै स्यूं


ना तन स्यूं

ना मन स्यूं

ना धन स्यूं

तन थक गयो है

मन पक गयो है

अर धन ?

बिंका तो पड़ रया है जी लाला

किंनै दिखावाँ फूटयोड़ा छाला

लोग लूण लियां बैठ्या है हाथां म्हे

बेटा पैली पैली तो भर सी बाथां म्हे

फेर मारसी ठोला खींच' माथा म्हे

तेरै प्यार कै चक्कर म्हे ठोला खाणा मंने पसन्द कोनी

ठोला तो ठोला होवै है कोई अलवर को कलाकन्द कोनी

जिका नै स्वाद स्यूं खाल्यूं

अर तेरै स्यूं प्यार निभाल्यूं


इसा, पांगळा गीत मेरै स्यूं कोनी गाइजै

जाओ लाड्डी सा जाओ.......

आपणै स्यूं कोई का ठोला कोनी खाईजै


-अलबेला खत्री


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Friday, December 3, 2010

नकली घी रो सीरो खा'र मर जावां




लाय लिपटगी घर स्यूं पण घर छोड़ कठि नै जावां ?

सूत्या सगळा राल्ली म्हे, किंनै दिल रो दरद सुनावां ?

खाण्डो कोनी, ढाल बी कोनी, अब कैंयाँ जान बचावां ?

जी म्हे आवै भायां नकली घी रो सीरो खा' मर जावां


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Wednesday, December 1, 2010

तू तो ले बैठ्यो मन्ने

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हास्य सम्राट डॉ रामरिख "मनहर" जी

कवि-सम्मेलना म्हे आपरै सञ्चालन म्हे

अक्सर मन्ने कहया करता हा :





मैं लेण आयो थो तन्ने

तू तो ले बैठ्यो मन्ने

तू छोड़ दे मन्ने

तो मैं ले जाऊं तन्ने ..............हा हा हा हा